28 मार्च, 1968 को जन्मे सुशांत सुप्रिय के सात कथा-संग्रह, तीन काव्य-संग्रह तथा सात अनूदित कथा-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं, अंग्रेज़ी में उनका एक काव्य-संग्रह ‘इन गाँधीज़ कंट्री’ और कथा-संग्रह ‘द फ़िफ़्थ डायरेक्शन’ प्रकाशित है। वे संप्रति लोकसभा सचिवालय, नई दिल्ली में अधिकारी हैं। हिन्दी के रचना-संसार में उनकी ख्याति एक बेहतरीन अनुवादक के रूप में है। वे नियमित रूप से हिन्दी के पाठकों को विश्व-साहित्य की श्रेष्ठ कृतियों से परिचित कराते रहते हैं।
हर्नांडो टेलेज़ कोलम्बिया के प्रसिद्ध पत्रकार और लेखक हैं। वे अपने जीवनकाल में लंबे समय तक जारी रहे गृहयुद्ध और सैनिक तानाशाही के साक्षी रहे। उनके कहानी संग्रह ‘एशेज़ फॉर द विंड’ के प्रकाशन से उनका नाम खासा मशहूर हुआ। उनकी कहानियाँ समकालीन जीवन और विशेष रूप से, उनके देश की त्रासद वास्तविकता के प्रति उनकी गहन और अत्यंत संवेदनशील टिप्पणियों का प्रमाण हैं।

दुकान में घुसते हुए उसने कुछ नहीं कहा। मैं अपने सबसे अच्छे उस्तरे चमोटे पर घिस रहा था। उसे पहचानते ही मैं काँपने लगा। लेकिन उसने इस ओर ग़ौर नहीं किया। अपनी भावनाओं को छिपाने की उम्मीद में मैं उस्तरों को धार देता रहा। मैंने अपने अंगूठे के मांस पर उनका परीक्षण किया, और फिर उन्हें रोशनी में देखने लगा।
उसी पल उसने गोलियों से जड़ा अपना कमरबंद निकाल लिया जिससे उसकी पिस्तौल की खोल लटकी हुई थी। उसने उसे दीवार में लगी एक कील पर टाँग दिया और अपनी फ़ौजी टोपी भी वहीं लटका दी। फिर वह मेरी ओर मुड़ा और अपनी टाई की गाँठ ढीली करता हुआ बोला, “भयानक गर्मी है। ज़रा मेरी दाढ़ी बना दो।” यह कहकर वह कुर्सी पर बैठ गया।
मैंने अंदाज़ा लगाया कि उसकी दाढ़ी चार दिन पुरानी थी— हाल ही के वे चार दिन जब वे लोग हमारे सैनिकों के विरुद्ध अभियान चला रहे थे। उसका चेहरा धूप में ज़्यादा देर तक रहने की वजह से जला हुआ-सा लग रहा था। मैं ध्यान से साबुन से झाग तैयार करने लगा। मैंने साबुन के कुछ टुकड़े काट कर उन्हें एक कप में डाला और उसमें गर्म पानी डाल कर उसे ब्रश से हिलाने लगा। तत्काल झाग उठने लगा।
“समूह के अन्य लड़कों की दाढ़ी भी इतनी ही बढ़ गई होगी,” उसने कहा। मैं झाग को फेंटता रहा।
“लेकिन हम सफल हुए, समझे? हमने उनके प्रमुख लोगों को पकड़ लिया। कुछ को हम मुर्दा लाए, कुछ अन्य को ज़िंदा पकड़ लाए। लेकिन जल्दी ही वे सब मारे जाएँगे।”
“आप कितने लोगों को पकड़ पाए?” मैंने पूछा।
“चौदह। हमें उन्हें पकड़ने के लिए घने जंगल में जाना पड़ा। पर हम सारा हिसाब-किताब चुका लेंगे। उनमें से कोई भी जीवित नहीं बचेगा।”
जब उसने झाग से भरा ब्रश मेरे हाथ में देखा तो उसने कुर्सी पर पीछे टेक लगा ली। मुझे अब भी उसके चारों ओर एक बड़ा कपड़ा डालना था। इसमें कोई शक नहीं था कि मैं घबराया हुआ था। मैंने एक दराज में से एक बड़ा कपड़ा निकाला और उसके गले के चारों ओर गाँठ बाँध कर वह कपड़ा उस पर डाल दिया। उसने बात करना जारी रखा। शायद उसने सोचा कि मैं उसके दल से सहानुभूति रखता हूँ।
“हमने जो किया उससे शहर के निवासियों को सबक़ मिला होगा।” उसने कहा।
“हाँ,” मैंने उसके गर्दन पर बँधी कपड़े की गाँठ को कसते हुए कहा।
“हमने बढ़िया ढंग से वह काम किया, नहीं?”
“बहुत बढ़िया,” ब्रश के लिए मुड़ते हुए मैंने जवाब दिया।
उस आदमी ने थकान का प्रदर्शन करते हुए अपनी आँखें बंद कर लीं और झाग के ठंडे स्पर्श की प्रतीक्षा करते हुए बैठा रहा। इससे पहले मैंने कभी उसे अपने इतने क़रीब नहीं पाया था। जिस दिन उसने शहर के सभी निवासियों को स्कूल के आँगन में उन चार विद्रोहियों की लाशों को देखने के लिए इकट्ठा किया था, उस दिन मैंने कुछ पल के लिए खुद को उसके सामने पाया था। पर विद्रोहियों की क्षत-विक्षत देहों के दृश्य की वजह से मैं उसके चेहरे को गौर से नहीं देख सका था। वही इस पूरे कांड का संचालक था। उसी का चेहरा अब मैं अपने हाथों में लेने वाला था।
वाक़ई वह कोई अप्रिय चेहरा नहीं था और वह दाढ़ी भी अशोभनीय नहीं थी, जो उसे थोड़ी बड़ी उम्र का बना रही थी। उसका नाम टौरेस था, कप्तान टौरेस।
मैं उसके चेहरे पर झाग की पहली परत लगाने लगा। उसने अपनी आँखें बंद रखीं।
“मुझे झपकी लेने में मज़ा आएगा,” वह बोला। “लेकिन आज शाम के लिए बहुत सारा काम किया जाना बाक़ी है।”
मैंने ब्रश उठा कर बनावटी उदासीनता से कहा, “क्या वह काम विद्रोहियों को गोली मारने का है?”
“हाँ, उसी तरह का काम है,” उसने उत्तर दिया। “लेकिन थोड़ा धीमा।”
“सबको मारना है?”
“नहीं, केवल कुछ को।”
मैं उसके गालों पर झाग लगाता रहा। मेरे हाथ फिर से काँपने लगे। वह आदमी इससे अनभिज्ञ था। मेरी क़िस्मत अच्छी थी। लेकिन मैंने चाहा कि काश, वह यहाँ नहीं आया होता। शायद हमारे कई लोगों ने उसे मेरी दुकान में दाखिल होते हुए देख लिया होगा। दुश्मन मेरे घर में आया था। मैंने ज़िम्मेदारी महसूस की।
मुझे किसी आम नाई की तरह ही बहुत सावधानी और सफ़ाई से उसकी दाढ़ी बनानी थी, जैसे कि वह कोई अच्छा ग्राहक हो। उसके एक भी रोम-छिद्र से खून की बूँद नहीं निकलनी चाहिए। मुझे यह भी सुनिश्चित करना था कि मेरे उस्तरे की ब्लेड उसकी त्वचा के किसी भी छोटे-से गड्ढे में न फिसले। मुझे यह भी देखना था कि उसकी त्वचा मुलायम और चमकदार बनी रहे ताकि जब मैं अपने हाथ का पिछला हिस्सा उस के गाल पर फेरूँ, तो वहाँ कोई भी बचा हुआ बाल महसूस न हो। हाँ, गुप्त रूप से मैं भी एक क्रांतिकारी था, लेकिन इसके साथ ही मैं एक कर्तव्यनिष्ठ और ईमानदार नाई भी था। मुझे अपने पेशे और अपने काम करने के तरीक़े पर गर्व था और चार दिनों की बढ़ी वह दाढ़ी एक चुनौती थी।
मैंने उस्तरा लिया, उसके ब्लेड वाले फाँक को बाहर निकाला और फिर एक ओर की कलम के नीचे अपने काम में लग गया। उस्तरा आराम से त्वचा पर चलने लगा। उसकी दाढ़ी मुलायम नहीं थी बल्कि कड़ी थी। वह ज़्यादा लम्बी नहीं थी, पर घनी थी। धीरे-धीरे साफ़ त्वचा उभरने लगी। उस्तरा किरकिराते हुए त्वचा पर आगे बढ़ता रहा। वह वैसी ही साधारण आवाज़ निकालता रहा जबकि उसके दूसरे सिरे पर झाग और बालों के गुच्छे जमा होते चले गए।
मैं उस्तरे को साफ़ करने के लिए एक पल रुका। फिर उस्तरे को धार देने के लिए मैंने दोबारा चमोटा उठा लिया क्योंकि मैं सही ढंग से काम करने वाला नाई हूँ। उस आदमी ने अपनी बंद आँखें अब खोल लीं। उसने अपना एक हाथ बँधे हुए कपड़े के भीतर से बाहर निकाला और उसने उस जगह अपने गाल की त्वचा को अपने हाथ से महसूस किया, जहाँ से झाग अब साफ़ कर दिया गया था। फिर वह बोला, “आज शाम छह बजे स्कूल के अहाते में आना।”
“क्या जो उस दिन देखा था, वही देखने के लिए?” मैंने भयभीत होते हुए पूछा।
“आज का तमाशा पिछली बार से बेहतर हो सकता है,” उसने कहा।
“आपकी योजना क्या करने की है?”
“मैं अभी नहीं जानता। लेकिन हम सब वहाँ अपना मनोरंजन करेंगे।”
एक बार फिर उसने पीछे कुर्सी पर टेक लगा कर अपनी आँखें मूँद लीं। मैं उस्तरा लेकर उसकी ओर बढ़ा।
“क्या आप उन सभी को सज़ा देना चाहते हैं?” जोखिम उठाते हुए मैंने सहम कर पूछा।
“हाँ, सभी को।”
साबुन का झाग उसके चेहरे पर सूख रहा था। मुझे जल्दी करनी पड़ी। आईने में मैंने गली की ओर देखा। वह पहले जैसी ही नज़र आई : पंसारी की दुकान में दो या तीन ग्राहक मौजूद थे। फिर मैंने दीवार-घड़ी पर नज़र दौड़ाई : दोपहर के दो बज कर बीस मिनट हो रहे थे। उस्तरा त्वचा पर नीचे की ओर चलता रहा। अब मैं दूसरी कलम के नीचे की ओर दाढ़ी बना रहा था। घनी, नीली दाढ़ी। उसे कुछ कवियों या पुजारियों की दाढ़ी की तरह इस दाढ़ी को बढ़ने का अवसर देना चाहिए था। वह दाढ़ी उस पर फबती। बहुत सारे लोग उसे पहचान नहीं पाते। इसमें उसका फ़ायदा ही था— मैंने गले के पास की जगह को मुलायम बनाने का प्रयास करते हुए सोचा। इस जगह पर उस्तरे को बड़ी प्रवीणता से चलाना था। हालाँकि यहाँ मुलायम बाल थे पर वे छोटे-छोटे घुँघराले गुच्छों में बदल गए थे। घने, घुँघराले बालों वाला कोई भी रोम-छिद्र खुल सकता था और उससे खून की बूँद बाहर टपक सकती थी। मेरे जैसा अच्छा नाई अपने किसी भी ग्राहक के साथ ऐसा नहीं होने देता। और यह तो विशिष्ट ग्राहक था। हममें से कितनों को इसने गोली मार देने का आदेश दे कर मरवा दिया था? हममें से कितनों की मृत देह को इसने क्षत-विक्षत करने का आदेश दे दिया था? बेहतर होता कि मैं यह सब नहीं सोचता। टोरेस यह नहीं जानता था कि मैं उसका शत्रु था। न उसे इस बात का पता था, न ही उसके अन्य साथी यह बात जानते थे। इस गुप्त बात के बारे में बहुत कम लोग जानते थे। इसी वजह से हर बार जब टोरेस शहर में कुछ करता था, विद्रोहियों का शिकार करने का अभियान चलाता था तो मैं उस के बारे में अपने लोगों को ख़ुफ़िया जानकारी दे सकता था। इसलिए मेरे लिए विद्रोहियों को यह बताना बेहद मुश्किल होने वाला था कि टोरेस मेरे चंगुल में था और मैंने उसे शांति से बच कर निकल जाने दिया— जीवित और बनी हुई दाढ़ी के साथ।
दाढ़ी अब लगभग पूरी बन गई थी। वह अपनी उम्र से कम आयु का लग रहा था, जैसे जब वह दुकान में आया था उसकी तुलना में अब उसके कंधों पर बरसों का भार नहीं रहा था। शायद उन लोगों के साथ यह हमेशा होता है जो नाई की दुकान पर जाते हैं। मेरे उस्तरे की करामात की वजह से टोरेस जैसे तरुण बन गया था। ऐसा इसलिए हुआ था क्योंकि मैं एक बढ़िया नाई हूँ, कम-से-कम इस शहर का सर्वश्रेष्ठ नाई हूँ। बस उसकी ठोड़ी के नीचे, गले के पास थोड़ा-सा झाग और लगाने की ज़रूरत थी। दिन कितना गर्म हो गया था। टोरेस को भी मेरी ही तरह काफ़ी पसीना आ रहा होगा। लेकिन वह बिल्कुल भयभीत नहीं था। वह एक शांत व्यक्ति था जिसने यह भी नहीं सोचा था कि उसे आज दोपहर-बाद बंदियों के साथ क्या करना है। दूसरी ओर मैं हूँ। मेरे हाथ में उस्तरा है और मैं उसके गाल और गले की त्वचा पर अपने हाथ फेर रहा हूँ। मैं कोशिश कर रहा हूँ कि इन रोम-छिद्रों से खून की बूँद नहीं निकले। लेकिन इस सब के बीच मैं ठीक से सोच नहीं पा रहा हूँ। धिक्कार है उसे यहाँ आने पर, क्योंकि मैं एक क्रांतिकारी हूँ, हत्यारा नहीं। और उसे मार डालना कितना आसान होगा। उसका मर जाना न्यायोचित होगा। क्या वाक़ई? नहीं! उफ़्, शैतान कहीं का। किसी और के लिए कोई अपना बलिदान दे कर हत्यारा क्यों बने? इससे क्या फ़ायदा होगा? कुछ नहीं। यह मरेगा तो कोई और आ जाएगा। वह मरेगा तो दूसरा कोई और आ जाएगा। और इस तरह हत्याओं का यह सिलसिला तब तक जारी रहेगा जब तक खून का समुद्र नहीं बन जाता।
मैं इसका गला पल भर में रेत सकता हूँ। खचाक्, खचाक्! मैं इसे शिकायत करने का मौक़ा ही नहीं दूँगा। वैसे भी इसने अपनी आँखें बंद की हुई हैं। इसलिए यह न तो उस्तरे की चमकदार धार, न ही मेरी चमकीली आँखें देख सकेगा। लेकिन मैं तो असली हत्यारे की तरह पहले ही काँप रहा हूँ। इसके गले से खून का फ़व्वारा निकलेगा और चादर, कुर्सी, मेरे हाथों और फ़र्श को भिगो देगा। मुझे दुकान का दरवाज़ा बंद करना पड़ेगा। और खून तब तक फ़र्श पर फैलता चला जाएगा जब तक वह गर्म, अनुन्मूलनीय, अनियंत्रित लहू बाहर गली तक नहीं पहुँच जाता— छोटी सी एक लाल धारा के रूप में। मुझे पूरा यक़ीन है कि एक तगड़ा झटका, एक गहरा चीरा सारे दर्द दूर कर देगा। इसे तड़पना नहीं पड़ेगा। लेकिन मैं इसकी लाश का क्या करूँगा? मैं इसकी मृत देह को कहाँ छिपाऊँगा? मुझे अपना सब कुछ यहीं छोड़ कर भागना पड़ेगा और कहीं दूर, बहुत दूर जा कर शरण लेनी होगी। लेकिन वे तब तक मेरा पीछा करेंगे जब तक वे मुझे ढूँढ़ नहीं लेते। “कप्तान टोरेस का हत्यारा ! इस नाई ने दाढ़ी बनाते हुए कप्तान का गला काट दिया। कायर कहीं का।”
और दूसरी ओर के लोग क्या कहेंगे? “उसने हम सब का बदला ले लिया। उसका नाम याद रखा जाना चाहिए। (और यहाँ वे मेरे नाम का ज़िक्र करेंगे।) वह शहर का नाई था। कोई नहीं जानता था कि वह हमारा समर्थक था।”
और इस सब से क्या होगा? या तो मैं हत्यारा कहलाऊँगा या नायक। मेरी नियति इस उस्तरे की धार पर निर्भर करेगी। मैं अपना हाथ थोड़ा और मोड़ सकता हूँ। उस्तरे को त्वचा पर ज़ोर से दबा कर मैं गले को गहराई तक काट सकता हूँ। त्वचा रेशम की तरह, रबड़ की तरह कट जाएगी। मनुष्य की त्वचा से अधिक मुलायम और कुछ नहीं होता और उसके ठीक नीचे तेज़ी से बाहर निकल आने के लिए खून मौजूद होता है। ऐसी धारदार ब्लेड कभी विफल नहीं होती। यह मेरा बेहतरीन उस्तरा है। लेकिन मैं हत्यारा नहीं कहलाना चाहता। बिल्कुल नहीं। आप मेरे पास दाढ़ी बनवाने के लिए आए हैं। और मैं ईमानदारी से अपना काम करता हूँ … मुझे खून से सने हाथ नहीं चाहिए। केवल झाग, बस वही। आप हत्यारे हो सकते हैं लेकिन मैं केवल एक नाई हूँ। समाज में हर व्यक्ति की एक जगह होती है। हाँ, हर व्यक्ति की अपनी एक जगह होती है।
अब उसकी ठोड़ी साफ़-सुथरी और मुलायम हो गई थी। वह कुर्सी पर आगे की ओर हो कर बैठ गया और उसने आईने में ग़ौर से अपना चेहरा देखा। फिर उसने अपने गालों पर अपने हाथ फेरे और उसे अपनी त्वचा बिल्कुल नई और ताज़ा लगी।
“शुक्रिया,” उसने कहा। वह उठ कर दीवार की खूँटी पर टँगी अपनी बेल्ट, पिस्तौल और टोपी की ओर बढ़ा। मेरे चेहरे का रंग उड़ गया होगा। मेरी क़मीज़ पसीने से भीगी हुई महसूस हो रही थी। टोरेस ने अपनी बेल्ट पहनी, खोल में मौजूद अपनी पिस्तौल को ठीक किया और अपने बालों पर क़रीने से हाथ फेरने के बाद उसने अपनी फ़ौजी टोपी पहन ली। अपनी पतलून की जेब में से उसने कई सिक्के निकाल लिए ताकि वह अपनी दाढ़ी बनाने के एवज़ में मुझे पैसे दे सके। फिर वह दरवाज़े की ओर बढ़ा। दरवाज़े के पास पहुँच कर वह एक पल के लिए रुका और मेरी ओर मुड़ कर उसने कहा, “उन्होंने मुझे बताया कि तुम मेरी हत्या कर दोगे। मैं केवल यही जानने के लिए यहाँ आया था। पर किसी को मारना इतना आसान नहीं होता। तुम मेरा यक़ीन मानो।” इतना कह कर वह बाहर गली में निकल कर आगे बढ़ गया।
संपर्क : A-5001, गौड़ ग्रीन सिटी, वैभव खंड, इंदिरापुरम, ग़ाज़ियाबाद–201014 (उ.प्र.) ; ई-मेल : sushant1968@gmail.com