कथेतर

किताबें, महंगाई और पाठकीय निर्णय

देवेश पथ सारिया हिन्दी के सुपरिचित युवा कवि हैं। उनकी प्रकाशित पुस्तकों में कविता संकलन :  नूह की नाव (2022), कहानी संग्रह : स्टिंकी टोफू (2025), कथेतर गद्य : छोटी आँखों की पुतलियों में (2022), अनुवाद : हक़ीक़त के बीच दरार (2021); यातना शिविर में साथिनें (2023) शामिल हैं। उन्हें समकालीन हिन्दी कविता का प्रतिष्ठित भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार (2023) प्राप्त हो चुका है। उनकी कविताओं का अनुवाद अंग्रेज़ी, स्पेनिश, मंदारिन, रूसी, बांग्ला, मराठी, पंजाबी और राजस्थानी भाषा-बोलियों में हो चुका है।  इन अनुवादों का प्रकाशन एन ला मास्मेदुला, लिबर्टी टाइम्स, लिटरेरी ताइवान, ली पोएट्री,  यूनाइटेड डेली न्यूज़, स्पिल वर्ड्स, बैटर दैन स्टारबक्स, गुलमोहर क्वार्टरली,  बाँग्ला कोबिता, इराबोती, कथेसर, सेतु अंग्रेज़ी, प्रतिमान पंजाबी  और भरत वाक्य मराठी पत्र-पत्रिकाओं में हुआ है।  A Toast to Winter Solstice (अंग्रेज़ी अनुवाद : शिवम तोमर, 2023) शीर्षक से एक अंग्रेज़ी कविता संकलन भी प्रकाशित है। वे संप्रति गोल चक्कर वेब पत्रिका का सम्पादन कर रहे हैं। प्रकाशकों के रवैये और रॉयल्टी के विवादों के बीच पुस्तक-संस्कृति के समक्ष समस्याएं और मौजूदा समय में पाठक द्वारा उसके विवेक-सम्मत निर्वाह के संबंध में उन्होंने कुछ विचार किया है, जो ‘सबद’ पर आपके लिए प्रस्तुत है  : 

"हर कवि शुरू में कविता की सभी पंक्तियों में ख़ुद को कवि साबित करने की ज़रूरत महसूस करता है। सरल शब्दों में लिखने का डर, हर बात को रूपकों से सजाकर कहने की कोशिश, आदि। एक परिपक्व कवि समय रहते इनसे ऊपर उठना सीख जाता है।"

-पोलिश कवयित्री विस्लावा शिम्बोर्स्का 

(सौरभ राय की किताब 'ओस की बूँद', वाणी प्रकाशन से साभार)

लेखक की अपनी एक यात्रा होती है। ख़ुद को ख़ूब तराश कर अपनी सही चमक हासिल करने में समय लगता है। एक लेखक को यह तय करना चाहिए कि यात्रा के सही पड़ाव पर किताब प्रकाशित कराई जाए।

किताबें महंगी होती जा रही हैं जबकि समय और पैसा सबके पास सीमित है। मुझे लगता है कि यदि आपका बजट सीमित है तो आपको बहुत सोच समझकर किताब लेनी होगी। आप हर किताब पर दांव नहीं लगा सकते। यदि कुछ युवा कवि आपको निराश करते हैं और उनकी किताबों में आपका पैसा व्यर्थ जाता है तो फिर आप बाकी संभावनाशील युवा कवियों पर भी दांव नहीं लगाते। फिर होता वही है कि सिर्फ़ ऐसे स्थापित कवियों की किताबें ख़रीदी जाती हैं जो पहले से पसंद हों। इससे होता यह है कि प्रकाशक नए कवियों पर पूँजी लगाने से बचते हैं। हर कोई यहाँ सुरक्षित खेल खेलना चाहता है। कुछ प्रकाशक जानबूझकर केवल विमर्श और विचारधारा विशेष के ऐसे कवियों को प्रकाशित करते हैं जिन्हें अवार्ड मिलने की संभावना अधिकतम हो। अवार्ड मिलेगा तो प्रकाशक के हिस्से में भी यश आएगा।

बीते दो-तीन साल में किताबें इतनी महंगी हो गई हैं कि कुछ प्रकाशक तो पेपरबैक किताबों के दो रुपए प्रति पेज से ज़्यादा ले रहे हैं। मैं फ़िलिस्तीनी कविताओं के अनुवाद की किताब (शीर्षक : कविता का काम आँसू पोंछना नहीं) पढ़ना चाहता था पर 190 पृष्ठ की इस पेपरबैक किताब का मूल्य ₹499 है। मुझे नहीं लगता कि प्रकाशक ने अनुवादकों को अग्रिम मानदेय दिया होगा और यदि दिया भी हो तो प्रति पेज ₹2.5 से अधिक लेना लूट है। मैं मन मसोस कर रह गया। 

कई प्रकाशक अच्छी किताबें छाप रहे हैं जैसे राजकमल, वाणी, सेतु, संभावना, आधार, राजपाल, नई किताब आदि। विनोद कुमार शुक्ल जी को भारी-भरकम रॉयल्टी देकर हिंद युग्म ने हिंदी जगत में एक भूचाल ला दिया है इसलिए इस प्रकाशक पर अलग से बात करना ठीक होगा। हिंद युग्म के पास कुछ अच्छे लेखक हैं (विनोद कुमार शुक्ल, विजयश्री तनवीर, अविनाश मिश्र, अशोक पांडे, केशव तिवारी)। मुझे हिंद युग्म के वे तथाकथित सितारा लेखक पसंद नहीं हैं (मानव कौल को छोड़कर) जिनकी हिंद युग्म गा-बजाकर चर्चा करता है। हिंद युग्म का प्रचार तंत्र मजबूत है।‌ हिंद युग्म रॉयल्टी के मामले में ईमानदार है और बाज़ार पर उसका अधिकार है लेकिन मुझे लगता है कि उसे अधिक संख्या में मुख्य धारा के लेखकों को अपनाना होगा। शैलेश भारतवासी ने अपने ‘संगत’ इंटरव्यू में अपने प्रकाशन से जुड़े जिन लेखकों का ज़िक्र किया उनमें विजयश्री तनवीर का नाम नहीं था जबकि विशुद्ध रूप से हिंद युग्म से छपने वाले लेखकों में विजयश्री सर्वश्रेष्ठ हैं। हिंद युग्म से जुड़े अन्य अच्छे लेखकों (जिन्हें मैं अच्छा मानता हूँ) की किताबें दूसरे प्रकाशकों से भी आई हैं। यहाँ नाम की बात करना इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे पता चलता है कि प्रकाशक किस तरह के लेखकों को तरजीह देगा। चूंकि बाज़ार हिंदी युग्म के हाथ में है, इससे यह भी निर्धारित होगा कि जेन ज़ी की पहली हिंदी किताब वाक़ई किसी अच्छे लेखक की होगी या किसी चलताऊ लेखक की।

बतौर पाठक अपनी बात करूं तो मैं मूल रूप से संभावना और राजकमल प्रकाशन से किताबें लेना पसंद करता हूँ। संभावना से इसलिए क्योंकि आज भी इस प्रकाशक को पाठक की जेब की परवाह है। इनकी किताबों के दाम वाजिब होते हैं और सीधे प्रकाशक से किताबें मंगवाने पर अतिरिक्त डिस्काउंट भी मिल जाता है। राजकमल में भी उनकी अपनी वेबसाइट से आर्डर करने पर कुछ डिस्काउंट मिलता है। राजकमल के ऑनलाइन पुस्तक मेले के दौरान भी विशेष छूट मिलती है। मेरी छोटी सी लाइब्रेरी में इन दो प्रकाशकों की किताबें बहुतायत में हैं। इन दो के अलावा ‌अन्य किसी प्रकाशक की किताब मंगवानी होती है तो मैं साहित्यारुषि से संपर्क करता हूँ। साहित्यारुषि और दिनकर पुस्तकालय बिना किसी अतिरिक्त डिलीवरी चार्ज के अच्छा डिस्काउंट देते हुए किताब उपलब्ध करवा देते हैं। मानव कौल के उपन्यास की हस्ताक्षरित प्रति मैंने साहित्यारुषि से ली है।

वैसे मैं किंडल पर ख़ूब किताबें पढ़ता हूँ। बल्कि कविता संग्रह तो मुझे किंडल पर पढ़ने में ही मज़ा आता है और सहूलियत भी मालूम होती है। दिक़्क़त बस यह है कि केवल राजकमल और वाणी प्रकाशन के कुछ कविता संग्रह किंडल पर उपलब्ध हैं। सेतु प्रकाशन ने किंडल पर सीधी-सीधी किताब की पीडीएफ डाल दी है जिसे पढ़ते हुए हर पृष्ठ पर जाकर जूम करना पड़ता है। यह रीडर फ्रेंडली तरीका नहीं है।

मैंने किंडल पर कुछ युवा कवियों की किताबें लेकर पढ़ीं लेकिन निराशा हाथ लगी। वैसे अपनी पीढ़ी के कवियों में मुझे जितनी अच्छी शायक आलोक की कविताएँ लगी हैं, उतनी किसी और की नहीं लगीं। अपनी पीढ़ी में वह मेरा सबसे प्रिय कवि हैं। यह अलग बात है कि मुझे उसका स्वभाव समझ नहीं आता और फ़ेसबुक मित्र होने के अलावा हमारा कोई संवाद नहीं है। अपनी प्रशंसा में किए जाने वाले पोस्ट या कमेंट पर व्यंग्यपूर्ण रिएक्शन देकर अपने प्रशंसकों को नाराज़ करना भी शायक आलोक को बख़ूबी आता है।

बीच में मैंने अनुवाद की ढेर सारी किताबें ख़रीदीं। संवाद प्रकाशन ने अनुवाद के क्षेत्र में काफी काम किया है लेकिन उनकी कई किताबों का अनुवाद बहुत निराशाजनक है। मुझे नहीं मालूम कि संवाद वाले सभी किताबों के लिए अच्छे अनुवादकों का चयन क्यों नहीं करते? क्या उनके पास अनुवादकों को देने के लिए ठीक-ठाक मानदेय नहीं है? संवाद की किताबों की प्रोडक्शन क्वालिटी भी मुझे कुछ ख़ास नहीं लगी। मुझे लगता है कि संवाद प्रकाशन को काफी सुधार की ज़रूरत है। ख़ास तौर पर तब जब पेंगुइन स्वदेश चर्चित किताबों के हिंदी अनुवाद लेकर आ रहा है। पेंगुइन के पास अच्छे अनुवादकों को भुगतान करने के लिए संसाधन हैं और अंग्रेज़ी की बहुत सी अच्छी किताबें उनके यहाँ से प्रकाशित हुई हैं जिनका वे अनुवाद करा सकते हैं। एक अच्छा अनुवादक एक औसत किताब को भी पठनीय बना सकता है। एक बुरा अनुवादक एक अच्छी-भली किताब की नैया डुबो सकता है। सिर्फ़ विदेशी लेखक के नाम से उत्साहित होकर किताब ख़रीदने से पहले सोचना चाहिए कि अनुवाद कैसा होगा। यदि अनुवादक भरोसेमंद है तो किताब ले सकते हैं। 

इस महंगाई के दौर में यदि एक मध्यमवर्गीय लेखक अपनी लेखन विधा की ही किताबें ख़रीदना चुने तो उसे बिल्कुल दोष नहीं दिया जाना चाहिए। बहुत सी विधाओं की ढेर सारी किताबें प्रयोग के तौर पर लेना एक लग्जरी है जिसे हर लेखक/पाठक अफोर्ड नहीं कर सकता। 

संपर्क : 9784972672deveshpath@gmail.com

 

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