कविता

स्वप्निल श्रीवास्तव की कविताएँ

स्वप्निल श्रीवास्तव नवें दशक के प्रमुख कवि हैं,  वे भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार, फ़िराक़-सम्मान, केदार-सम्मान और पुश्किन सम्मान से सम्मानित हैं। ‘ईश्‍वर एक लाठी है’ से प्रारंभ हुई उनकी कविता-संग्रहों की यात्रा अद्यतन गतिमान है। वे कथा और संस्मरण जैसी विधाओं में भी समान रूप से सक्रिय हैं। उनसे मोबाइल नंबर 9415332326 पर संपर्क किया जा सकता है। 

पुल

 

उस पुल से कभी

मत गुजरना जिसे तुम्हारे

दुश्मनों ने बनाया है

उसके खंभे झूठ पर

टिके हुए हैं

वे पहली बारिश में

धराशायी हो जायेंगे 

 

उस कश्ती से नदी मत

पार करना जिसके नाविक

धोखेबाज हों 

वे तुम्हें बीच नदी में

डुबो सकते हैं 

 

किसी सुनहरे पुल को देखकर

फ़िदा मत होना

उसकी बुनियाद

बहुत कमजोर होती है

 

अच्छा यह है कि तुम

नदी से दोस्ती कर लो

वह तुम्हें सुरक्षित पार

उतार  देगी

अंगूर की बेल

 

एक दिन मैं अपने बगीचे में

अंगूर की बेल लगाऊँगा

उसके लिए अंगूर की लतर

अंगूर की बेटी से मांग लूँगा

 

उसे पल्लवित और पुष्पित देखकर

खुशी से नाचने लगूँगा

 

जब अंगूर आ जाएंगे तो

उसका पहला फल 

उस लोमड़ी को दूंगा 

जिसके लिए अंगूर खट्टे थे

 

फिर मैं अंगूर लेकर कलाल

के पास जाऊंगा कि वह

इसका आसव तैयार कर दे

 

जब मद तैयार हो जाएगा

तो अंगूर की बेटी को उधार

चुका दूंगा

किस्सा–कहानी

 

 

कोई भी किस्सा कहानी हो

उसके अंत में आ जाती थी माँ

जब माँ आती थी तो पिता  का

आना लाजिमी था

 

 

बच्चों ने कोई गुनाह नही

किया था इसलिये कहानी में उन्हें

बराबर की जगह मिलती थी

 

 

परिवार ही हमारा देश था

उसमें लड़ाइयाँ भी होती थी

जिसमें किसी को जीत की

खुशी देने के लिये हम

हार जाते थे

 

 

सबसे ज्यादा मैं हारता था

क्योंकि मैं लोगों से सर्वाधिक

प्रेम पाना चाहता था

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