अनुवादकविता

ल्योनीद गुबानोव की कविताएँ

ल्योनीद गुबानोव

20 जुलाई 1946 को मास्को के सुशिक्षित परिवार में जन्म। छोटी उम्र से ही कविताएं लिखना शुरू किया। बीसवीं शताब्दी के आरंभिक वर्षों के काव्यादोंलन फ्युचुरिज्म (भविष्यवाद) से प्रभावित। नवभविष्यवादी पत्रिका का मित्रों से मिलकर प्रकाशन का आरंभ। विभिन्न शिक्षा-संस्थानों में कविता-पाठ। 1964 में प्रख्यात कवि येवोनी येतुशेंको के सहयोग से प्रतिष्ठित एवं लोकप्रिय पत्रिका ‘यूनोस्त’ (यौवन) पत्रिका में लंबी कविता के कुछ अंश प्रकाशित। यही उनकी अंतिम और एकमात्र रचना जो सरकारी पत्रिका में अपने जीवनकाल में जगह पा सकी। 1965 में अपने युवा साथियों के साथ ‘स्मोग’ (साहस, विचार, बिम्ब, गहराई) नाम से कवि समुह बनाकर गैर-सरकारी प्रकाशन का आरंभ। इसी वर्ष तीन संग्रहों में रचनाएं प्रकाशित। विभिन्न जगहों पर ‘वामकला’ के पक्ष में कविता-पाठ एवं प्रदर्शन। मनोरोगियों चिकित्सालय में ‘इलाज’। कविता मंच ‘स्मोग’ की गतिविधियों पर प्रतिबंध। रोज़ी-रोटी के लिए जगह-जगह मज़दूरी। साठ-सत्तर के दशकों के रूसी काव्यजगत के शोर-शराबे के बीच गुबानोव जैसे एकदम गुमनाम। 8 सितंबर 1983 में मात्र 37 साल की उम्र में देहांत। 1994 में ‘बर्फ में देवदूत’ नाम से पहला कविता संग्रह प्रकाशित होने पर देश-विदेश में चर्चा का विषय बना। इसी वर्ष से आरंभ हुआ अन्य रचनाओं का प्रकाशित, अनूदित और संगीतबद्ध होना। जे.एन.यू से ‘विश्व साहित्य : चुनिंदा रचनाएं’ संकलन, समास, विश्वरंग, कृति बहुमत एवं अर्गला में अनुवाद प्रकाशित।

वरयाम सिंह जेएनयू के रूसी अध्ययन केंद्र में प्रोफ़ेसर रहे हैं। वे हिंदी, अंग्रेज़ी, पहाडी, रूसी और पंजाबी आदि भाषाओं के विद्वान हैं। उनके पहाड़ी में तीन कविता-संग्रह, हिंदी में दो कविता-संग्रह, रूसी साहित्य पर विभिन्न पत्रिकाओं और पुस्तकों में लेख प्रकाशित हो चुके हैं। उन्होंने बनिन की रचनाओं के हिंदी अनुवाद-संकलन का संपादन किया है। उनके द्वारा रूसी कविता के हिंदी में बीस अनूदित संकलन प्रकाशित हैं। वे रूसी कविता, बेलारूसी कविता, किर्गीज कविता को हिन्दी में प्रस्तुत करने वाले प्रसिद्ध हिन्दी अनुवादक हैं। तिब्बती महाकवि मिलारेपा की कविताओं का उन्होंने हिन्दी में अनुवाद किया है। उन्हें हि.प्र. अकादमी, सोवियत भूमि नेहरू पुरस्कार, म.प्र. साहित्य परिषद का रामचंद्र शुक्ल सम्मान, रूस सरकार का पुश्किन सम्मान इत्यादि सम्मान प्राप्त हो चुके हैं।

मैं अकेला  

यहां अकेला हूं अकेला

कील कर रख दिया गया है मुझे यहां,

मुझे अच्छा नहीं लग रहा लोगों का संग,

स्वर्णमुखी राजकुमारियों का धुंधलापन बनकर रह गया हूं

 

मैं यहां अकेला हूं, अकेला
कंपकंपी छूटती है अपनी ही लिखावट देख

मुझे भूल चुकी है प्रिय स्त्री,

अपने लिखे से सावधान कर देना है इस ठंडे घर को

घोंसले पिरोने हैं, तारों
के बीच शराब पीनी है
,

उदासी के यहां तो कोई रविवार नहीं होता

ईश्वर तुम्हें विपदाओं में डाले,

ईश्वर तुम्हें वरदान दे,

खुशियां और सुख दे,

अचानक फांसी का तख्त दे

 

हाथों से जाम गिर रहे हैं,

फूल दोष दे रहे हैं कि उन्हें अलग किया गया

एकबार फिर से बुराई को रास्ता नहीं मिल रहा,

घोड़े की तरह चक्कर काट रही है ईर्ष्या

खड़े हो गये हैं रोंगटे … और पगडी

वर्णन कर रही है कालिखपुते सब चेहरों का,

अप्रिय व्यक्ति की तरह काली है शाम

और नियति जैसे कोठड़ी का आदेश

काली स्टॉकिंग पहन रहा है मेरा दुखभरा अपमान

मैं यहां अकेला हूं

तुम मेरे लिए लिखो

 

किस तरह के यान तोड़े गये थे यहां

ओ ईश्वर जननी  

ओ ईश्वर जननी, प्रार्थना कर

मिखाइल के स्वास्थ्य के लिए,

तू जितनी भी चाहे उसकी निंदा या प्रशंसा कर

पर ध्यान रखना उसे एक भी गोली न लगे,

वह थोड़ा दुबला हो जाय, पहने रखे बंद गले का कोट

मेरे तैयार किये पुंश से पेट उसका जल जाय,

दूसरों के घावों पर से उड़ती जायें तितलियां,

बूढ़े पूश्किन चले जायें किसी के यहां मेहमान,

मॉउथ ऑर्गन बजाये मोत्सर्त,

गला कटे तो किसी दूसरे का,

शव पड़े हों मोर्ज़ की वर्णमाला के क्रम में

और साल्येरी हो पालतू कुत्ता किसी के यहां

नये साल का कार्ड    

रुक जायेगा यह बादल

बूढ़ा हो जायेगा रुके रुके,

जो भी बनायेगा सलीब, प्रार्थना करेगा

ख्याति प्राप्त होगी उसे मेरे हृदय में

 

जर्जर हार पर नज़र दौड़ाऊंगा,

चेहरा देखूंगा, शिकायत करूंगा

फिर देखा नहीं जा सकेगा उसे उम्र भर

बैठी रहेगी उदास, अग्निकांडों को देखती

सफेद हाथ अनुमति मांगते रहेंगे

सुरपट्टी के बिछोह को दूर करने की,

जब तक नमक के लिए भागता रहूंगा

माथा नहीं टेकूंगा शक्कर के सामने

जब तक सुलह होती रहेगी बारिश से,

जब तक ताकत अजमाते रहेंगे नेतागण,

…. यह संसार साबुनदानी के जैसा रहेगा

हर तरह के बुलबुलों पर विश्वास होता रहेगा

चॉकलेटी कब्रिस्तानों में भीख नहीं मिलती

यों ही गिर जाते हैं बुलबुले ….

बुलबुलो, दिखाओ मुझे खेल

इस गोल पृथ्वी की तरह … सचमुच का

पृथ्वी रुकती नहीं

यह कब्र भी नहीं बचेगी

सिर्फ झाग याद रहेगी

याद रहेगा उसका उजलापन

बिलियर्ड के गोले उड़ रहे हैं,

लुहारखाने में नाच रहे हैं घोड़े

ढोकर ले जा रहे हैं मुहावने सलीब,

घड़ियां मोहित हो रही हैं खून पर

 

मेरे गुब्बारे, खेलता रह तू

आखिर हवा निकल ही जायेगी तेरी भी,

हमारे सपने सपने ही रहेंगे,

वोरोनेझ की गलियों में

चोरी कर रहा होगा मंदेलश्ताम

चमक उठो हमउम्र वादक की बांसुरी की तरह,

तैरते हुए जाओ गुलाबी नाव के पीछे

सिर्फ फंदे पर ही तो लटकना होता है

 

असत्य को देख पाने के लिए

अभिलाषा    

मुझे उस पत्थर को भेंट कर देना

ताकि वह मेरे नीचे नहीं बल्कि मैं रहूं उसके नीचे

पत्थर की आंखें भूरे रंग की हैं

मेल नहीं खाती मेरी नीली आंखों से

मैं पड़ा रहूंगा उसके नीचे

सुनता रहूंगा, कहता रहूंगा भला-बुरा

कि फिर से मास्को से वितेग्रा तक

कोई है लाठी से इशारा कर रहा है पाण्डुलिपियों की तरफ

जिनके लिए खून बहता रहा है मेरा

कोई बुदबुदा रहा है गंदे होंठों से

ईश्वर की दया और ज़ार के साहस की प्रार्थना कर रहा है ….

मुझ उस पत्थर को भेंट कर देना

जिस पर लेटे धूप सेंकने की इच्छा हुई थी कभी ! …

मज़ाक-सी एक व्याख्या    

तुमसे मुलाकात हो ही गई है

अब किस लिए भटकता रहूं,

अब कोई नहीं जिसके लिए पीता रहूं,

अफ़सोस कि तुम्हारी उम्र अठारह की नहीं

अफ़सोस कि मैं भी तीस का हुआ नहीं –

यह सरल सी सच्चाई

आग में झोंक रही है मेरे हृदय को 

जब तक तुम चुपके से व्यस्क हो जाती

मैं दांतेस के साथ पीता रहता वोदका 

मुझे मालूम है सबकुछ हो सकता है,

मैं अपनी दोस्त के साथ स्वर्ग में हूंगा

लेकिन हृदय के द्वार पर किलकारी दस्तक दे रही है :

मुझे तुमसे प्यार है

प्यार है

प्यार है

और यदि मैं मर जाऊं, याद रखना –

येसेनिन के बुग्यालों में

खड़ा है मेरा स्मारक

अपनी आस्तीन में उसने

 

छिपा रखा है तुरुप का पत्ता

आंखें साथ छोड़ देंगी    

जब आंखें साथ छोड़ देंगी मेरा

वरदाश्त नहीं होगा जब एक भी आंसू

चला जाऊंगा मैं किसी दूसरी के पास

जैसे हिरण के पास जाता है चाकू

जैसे कोपिर्निकस के पास जाती है ईंधन की लकड़ी

पूरा हो रहा होता है जब ईश्वर का फैसला

 

खुदाई करने वाले, इतनी देर क्यों कर रहे हो,

डरो नहीं तुम नीचे नहीं गिरोगे

मैंने अपनी आत्मा को बदल दिया है एक खुरली में

इन नितांत अकेले पक्षियों के लिए

मेरे भीतर रहो ओ मेरी ज्ञान-दृष्टि

दर्द की इस रोटी के टुकड़े-टुकड़े कर दे

और अधिक उदारता के साथ

कि वह याद दिलाती रहे हमें इस मिट्टी की

याद दिलाती रहे सफेद पक्षियों और दूसरों को भी

 

सचमुच में यह वर्फ हो रही है

हवा और वपतिस्मा की गंध आ रही है इससे

तुम्हारी छाती के भीतर पूरी तरह अंधा हो गया है

क्षमा का वो पिल्ला रो रोकर अंधा हो गया था जो

ओ अबोध शिशु, तू जो पड़ा हुआ मिला था कहीं,

कब छोड़ देगा अपनी मां को ?

आओ, हम दोनों चल देते हैं किसी दूसरी के पास,

तुम ऐसे ही और मै। पथप्रदर्शक के रूप में

आओ, लाइलैक के जैसे इन होंठों में,

कुछ न देख पाती इन आंखों में,

सफेद पत्थरों से बने इन गुंबदों में, आओ, चलें शरण ढूंढते हैं कहीं !

 

हंसते हो तुम “अपनी चाची के यहां नहीं,

कहां जाओगे मुझसे दूर भाग कर?”

क्षमा करना, हकलाते हुए क्षमा करना मुझे

कि मैं खेलने लगा हूं तुम्हारी वेणी से

सुनाने लगा हूं हास्यजनक किस्से

तुम्हारे सहमे सहमे-से हृदय की कसम

खा रहे हैं हंस झोपड़ी के पीछे

मैं सुपात्र नहीं तुम्हारी शुचिता का

मुझे चूमा गया है, खंगाला गया है

 

मैं चला जाऊंगा अब दूसरे होंठों के पास,

वर्फ के बीच बने किन्हीं दूसरे छिद्रों के पास

मैं चला जाऊंगा दुखों और आश्चर्यों से घिरा

किसी के लिए मैं प्रिय हूंगा

अभिशप्त हूंगा किसी दूसरे के लिए

किसी के लिए इतना रुलाया हुआ

और किसी के लिए इतना खुश

नींद में तुम भेंट करती हो मुझे चुम्बन

इसी क्षण मैं पोंछता हूं आंसू –

मैं प्रेम के भी योग्य हूं

और पर्याप्त शत्रुता शेष है अभी कविता के प्रति

अपनी टिप्पणी दर्ज़ करें

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button